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महावीर जेम्स के डायरेक्टर और एसएनडीटी यूनिवर्सिटी के गेस्ट लेक्चरर श्री कौशिक संघवी के साथ आज के समय में हेरिटेज ज्वेलरी की अहमियत पर बातचीत। साथ ही ज्वेलरी डिजाइनिंग कोर्स की पढ़ाई कर रहे छात्रों के लिए उपलब्ध अवसरों पर उनकी राय। पेश हैं इसी बातचीत के मुख्य अंशः आप एक शिक्षाविद हैं। आप बताएं कि ज्वेलरी डिजाइनिंग स्कूल के पाठ्यक्रम में भारत की हेरिटेज ज्वेलरी की क्या भूमिका हो सकती है? भारतीय हेरिटेज ज्वेलरी की खूबसूरती इसकी डिजाइन की विशिष्टता और जटिल जिआनों को तैयार करने में दस्तकारों की कुशल कारीगरी के प्रयास में निहित है। दूसरी बात यह कि हमारे यहां विभिन्न अवसरों और समारोहों के लिए आभूषण हैं। भारत में महिलाएं विभिन्न तरह के आभूषण धारण करती हैं और ऐसी भी ज्वेलरी हैं जो मिहलाओं के हर अंग की शोभा बढ़ा सकते हैं। पैरे की अंगुलिया से सिर तक, भारतीय महिलाओं की सुंदरता को निखारने के लिए विभिन्न तरह की ज्वेलरी बनाई जाती है। जहां तक भारतीय ज्वेलरी में विविधता का सवाल है तो यह मुख्य रूप से क्षेत्रीय जरूरतों के मद्देनजर डिजाइनों में अंतर के कारण होती है, जिसमें विभिन्न संस्कृतियों के मेल के साथ ही वहां के लोगों की जीवनशैली के मुताबिक पसंद भी शामिल होती है। भारतीय हेरिटेज ज्वेलरी इस पर आधारित आभूषण डिजाइनिंग स्कूल के पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि ऐसी ज्वेलरी की डिजाइन और निर्माण के तरीकों से लगभग सभी प्रकार के आभूषणों को कवर किया जाता है। इसलिए इस क्षेत्र में पढ़ाई कर छात्रों के लिए हेरिटेज ज्वेलरी बनाने की तकनीक का अध्ययन करना जरूरी है। एक शिक्षाविद के नाते मेरा छात्रों को सुझाव है कि वे भारतीय राज्यों पर एक प्रोजेक्ट तैयार करें, जिससे वे देश के अलग-अलग राज्यों के लोगों की संस्कृति, धर्म, पैटर्न और आम लोगों की पसंद-नापंसद के बारे में जान सकेंगे और रिसर्च के नतीजे के आधार पर डिजाइन तैयार कर सकेंगे। हाल के दिनों में छात्रों की मानसिकता और डिजाइन प्रेरणा के बारे में आप क्या बदलाव देखते हैं? फिलहाल अधिकांश छात्र आधुनिक पश्चिमी डिजाइनों से काफी प्रभावित हैं। यह आभूषण फैशनेबल होने के साथ ही हल्के वजन के होते हैं। वे बाजार में व्यावसायिक सफलता के लिए व्यावहारिक पहलुओं के तहत बाजार में इसे स्वीकार्यता मिलने की राह देख रहे हैं। मैंने अनुभव किया है उनमें आर्टिस्टिक ज्वेलरी (कलात्मक आभूषण) बनाने की क्षमता जरूर है, मगर महंगी हेरिटेज ज्वेलरी के चलते वे मजबूरी में फैशनेबल डिजाइनों की ओर आकर्षित हुए हैं। ज्वेलरी निर्माण के पैतृक व्यवसाय में बने रहने के लिए भावी पीढ़ी को कैसे प्रोत्साहित-प्रेरित किया जा सकता है? ऐसे कई उपाय हैं जो भावी पीढ़ी को ज्वेलरी बनाने के पैतृक व्यवसाय में बनाए रखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं। १. कम से कम उन्हें मेकिंग चार्ज निरंतर मिलना चाहिए सबसे अहम यह कि भारत में उपभोक्ताओं को शिक्षित करना है ताकि वे ०% शुल्क या कम मेकिंग चार्ज जैसी भ्रामक बातों के जाल में न फंसें। जेम एंड ज्वेलरी क्षेत्र में शिक्षा सिस्टम में ऐसे कौन से स्पेशल कोर्स जोड़े जाएं या किस तरह की टीचिंग व्यवस्था की जाए ताकि छात्रों को वैश्विक मानकों के मुताबिक प्रतिस्पर्धी बनाया जा सके? इस मामले में कई पाठ्यक्रमों की सिफारिश की जा सकती है। वैसे जरूरी यह है कि इस कोर्स की पढ़ाई कर रहे छात्रों को बाज़ार विशेषज्ञ (अर्थात उस क्षेत्र के व्यापारी/नियमित कारीगर) सिखाएं-पढ़ाएं। पेशेवर शिक्षाविद के पास इस कला की आंशिक जानकारी होती है। किताबी ज्ञान से छात्र कोर्स पूरा कर लेते हैं और पासिंग सर्टिफिकेट भी हासिल कर लेते हैं। लेकिन वैश्विक मानकों के साथ प्रतिस्पर्धा करने के लिए, फैकल्टी को बाजार में वर्तमान व्यवहार और प्रथाओं के बारे में अच्छी तरह से जागरूक होना चाहिए। इस बारे में मैं कुछ सुझाव दे सकता हूं, जो इस प्रकार हैः १. निर्यात प्रक्रिया और कानून के बारे में समूची जानकारी क्या मौजूदा पीढ़ी के छात्र हैंडमेड ज्वेलरी बनाने में रुचि रखते हैं। मशीनीकरण के दौर में आप के अनुसार हैंडमेड ज्वेलरी क्षेत्र को संरक्षित करने के लिए कौन से कदम उठाए जाने चाहिए? वर्तमान पीढ़ी के छात्र निश्चित रूप से हैंडमेड ज्वेलरी बनाने में दिलचस्पी रखते हैं, बशर्ते इन्हें इसके लिए उपयुक्त अवसर मिले। उनके लिए जिस मुख्य बात की आवश्यकता है, वह है कि हैंडमेड ज्वेलरी के क्षेत्र में उन्हें जरूरी इंचरिक्टव गाइडेंस मिले, ताकि वे सही दिशा में आगे बढ़ सकें। छात्रों को समझाया जाना चाहिए कि मैकेनाइज्ड मैनुफैक्चरिंग के मुकाबले उनके द्वारा बनाए गए हैंडमेड ज्वेलरी की एक मास्टरपीस कितनी नाय़ाब और कीमती हो सकती है। उद्योग में डिजाइनिंग और विनिर्माण को प्रोत्साहन देने लिए कारीगरोंऔर छात्रों के लिए प्रतिस्पर्धा आयोजित की जानी चाहिए, क्षेत्रीय आधार पर पुरस्कार देना चाहिए और ट्रेड मैगजीन में हुनरमंद कारीगरों एवं प्रतिभाशाली छात्रों को जगह उचित जगह मिलनी चाहिए।
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