श्री गणपति ज्वैलर्स के निदेशक आलोक गोयल के साथ विशेष बातचीत

अपने व्यवसाय के बारे में हमें कुछ बताएं? कितने समय से आप ज्वेलरी के रिटेल कारोबार में हैं? समय के साथ आपने आभूषण कारोबार में क्या बदलाव देखे हैं?

उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले में हम २० साल से आभूषणों का निर्माण कर रहे हैं, साथ ही इसके रिटेल कारोबार में भी हैं। जो बदलाव देखने को मिला है, वह गहनों की उन डिजाइन से जुड़ा है, जिसे उपभोक्ता पसंद करते हैं। पहले अल्मोड़ा के स्थानीय लोग पारंपरिक डिजाइन वाले आभूषणों को पसंद करते थे। हालांकि अब उनका झुकाव कम वजन वाले आधुनिक आभूषणों की ओर बढ़ा है। ज्वेलरी बनाने की तकनीक में भी बदलाव हुआ है। आजकल कारीगर आभूषण बनाने के लिए गोल्ड डाईज का इस्तोल करते हैं जबकि पहले लोहे या पीतल के मोल्ड पर गोल्डन प्लेट रख कर पिटाई की जाती थी, ताकि गोल्ड प्लेट पर डिजाइन उभारी जा सके।

इस क्षेत्र के आभूषणों में कुमाऊं ज्वेलरी की खास पहचान है। हमें इसकी विशेषता के बारे में बताएं? क्या लोगों के बीच अब भी इसकी मांग है?

कुमाऊं ज्वेलरी की जो सबसे बड़ी खूबी है, वह यह कि इसे २४ कैरेट सोने से बनाया जाता है, इसमें किसी तरह की न तो मिलावट की जाती है और न ही सोने के कैरेट में कोई कटौती की जाती है। आभूषणों के जोड़ पर थोड़ा कैरेट कम होता है, क्योंकि इसे जोडμने की आवश्यकता होती है। इस तरह की डिजाइन से तैयार आभूषण बाजार में उपलब्ध अन्य गहनों के मुकाबले ज्यादा लोचदार और मुलायम होते हैं। इतना ही नहीं तैयार उत्पादों की चमक सोने के प्राकृतिक रंग जैसी होती है, जो ज्यादा चमकदार होने के साथ ही आकर्षक भी होता है। इसमें ब्रेकेज नहीं हो सकता है, बावजूद इसके आवश्यकतानुसार आभूषण को किसी भी समय आकार दिया जा सकता है।

उत्तराखंड हिमालय के ऐसे छोर पर स्थित है जिसकी सीमा नेपाल और तिब्बत से लगी है, जहां की संस्कृति, विरासत और कलाएं भी समृद्ध है। कुाऊं ज्वेलरी स्टाइल ठीक उसी तरह है जैसे कि नेपाल में गहने बनाए जाते हैं। इसी तरह की स्टाइल उत्तर पूर्व भारत के हिस्सों में भी पाई जाती है। इन क्षेत्रों में भी चंकी डिजाइन वाली भारी ज्वेलरी २४ कैरेट सोने की बनाई जाती है, जिनमें कहीं पर कोई जोडμ नहीं होता। सोने के तार पर वे हाथ से काम करते हैं और आभूषण पर खूबसूरत डिजाइन उकेरने के लिए हथौड़ी और सुई का इस्तोल करते हैं। दिल्ली में एक जगह है मजनू का टीला, जो नेपाली ज्वेलरी डिजाइनिंग के लिए मशहूर है।

व्यवसाय में तनिष्क आदि जैसे रिटेलर बड़ी दुकानें खोल रहे हैं।इससे आपके कारोबार पर कोई असर पड़ा है?यदि हां तो कितना?

तनिष्क जैसे बड़े रिटेल ज्वेलर्स के प्रवेश से हमारेक्षेत्र में बाजार प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। अब हमें डिजाइन पर और काम करना होगा और विविधता के साथ हमें उत्पाद श्रृंखला का विस्तार करना होगा। ज्वेलरी निर्माता अब पंजीकरण करा रहे हैं और हॉल मार्क वाली ज्वेलरी की बिक्री कर रहे हैं।उपभोक्ताओं को इसका लाभ मिल रहा है।

जीजेईपीसी और जीजेएफ सहित अन्य संगठनों के साथ पर्याप्त संवाद और जानकारी क्या आपको मिल रही है?

हमें इस तरह की सरकारी संस्थाओं के बारे में जानकारी है, लेकिन छोटा शहर होने के नाते हमारे क्षेत्र में इनका बहुत कम प्रभाव है।

इस क्षेत्र में ऐसे क्या उपाय किए जाएं ताकि विस्तार और विकास हो सके? उदाहरण के लिए वित्त, ज्ञान, प्रोत्साहन?

यहां से बड़ी संख्या में लोगों का पलायन मैदानी इलाकों और महानगरों में हुआ है, जिसके चलते क्षेत्र का आभूषण कारोबार बुरी तरह से प्रभावित हुआ है।उत्पाद विविधता के विस्तार और स्टॉक में बढ़ोतरी के साथ ही सोने की शुद्धता पर काम कर ज्वेलर अपना व्यवसाय बढ़ा सकते हैं।

कारोबार बढ़ाने के लिए क्या आप स्थानीय स्तर पर प्रमोशन करते हैं? यदि हां, तो कैसे?

हां,कारोबार बढ़ाने के लिए हम निश्चित तौर पर प्रमोशन की योजना बनाते हैं। हम अखबारों और फ्लेक्स में विज्ञापन देते हैं।त्योहारी मौसम के दौरान हमारे विभिन्न ऑफर्स की जानकारी हम एसएमएसके माध्यम से उपभोक्ताओं तक पहुंचाते हैं।

करों और सरकार की नीतियों के बारे में आपकी क्या राय है?

सरकार की मौजूदा नीतियों से हम खुश और संतुष्ट हैं। आभूषणों पर तीन प्रतिशत कर लगाया गया है, जो कि हमारे ऊपर कोई बहुत बड़ा बोझ नहीं है, हम इसका स्वागत करते हैं। सोने की शुद्धता को लेकर सरकार सख्त हो सकती है। अल्मोड़ा शहर में सरकार को हॉलमार्किंग सेंटर बनाना चाहिए। इसकाम के लिए हमें दिल्ली जाना पड़ता है, जिस खर्च के चलते ज्वेलरी की लागत बढ़ जाती है।