आईजीआई ट्रेडिशनल ज्वैलरी आईडेंटिफिकेशन रिपोर्ट
जड़ाऊ की उत्कृष्टता की पुष्टि

डायमंड सर्टिफिकेशन और एजुकेशन में दुनिया की ट्रस्टेड कंपनियों द्वारा अनकट ज्वैलरी को सर्टिफाइ करने के निर्णय ने अनऑथेन्टिकेटेड खरीद के डर को भगाने में सफल साबित हुआ है। भारतीय सभ्यता की शुरुआत से ही ज्वैलरी खरीदना भारतीय संस्कृति का अनिवार्य हिस्सा रहा है। सोने और चांदी जैसे कीमती स्टोन्स और धातुओं का भारत एक प्रमुख उत्पादक है। इसलिए यहां सोने चांदी की ज्वैलरी की कला की बेहतरीन प्रस्तुति हुई है। भारतीय शिल्प कौशल की दुनिया के कई हिस्सों में प्रेमी पाये जाते हैं। इससे कारण ही यहां के ज्वैलरी पारखियों की वैश्विक स्तर पर पहचान होने लगी है और विभिन्न भारतीय ज्वैलरी की प्रशंसा होने लगी है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर से अनुकरणीय कलाकृति को कुंडल, बंगाल के शाही स्पर्श के साथ रत्ततचूर और दक्षिण भारत की टेंपल ज्वैलरी की विविधता की मांग शुरु कर दी है। इस तरह की नोवेल्टी को तैयार करने और उसकी बारिकियों को समझना शुरु कर दिया है। उठे हुए अनकट ज्वैलरी जिसे आमतौर पर जड़ाऊ कहा जाता है, ने कर्ई लोगों का ध्यान आकर्षित किया है और आज इनका मार्केट रिजनल से लेकर इंटरनेशनल स्तर कर पहुंच चुका है।

जड़ाऊ की मांग

पिछले कुछ वर्षों में, वेडिंग स्टाइलिस्टों ने एक पारंपरिक भारतीय दुल्हन को एक समृद्ध परंपरागत आउटफिट और टाइमलेस ज्वैलरी से संवारना शुरु किया है। स्टेलर परफेक्ट ब्राइड दुल्हन के लिए वैसे तो बहुत से विकल्प हैं लेकिन उन्होंने कुछ इन्क्रेडिबल स्टाइल्स को शुरु किया जो पुराने स्टाइल्स को रिफाइंड किया गया है। मुगल वंश के समृद्ध सांस्कृतिक विस्तार से प्रेरित भारत के उत्तरी हिस्सों में कुंदन और पोल्की शैली के गहनों का जयपुर और उत्तर भारत के अन्य हिस्सों में निर्माण होता है। इनकी अत्यंत सुंदर और मोहक डिजाइनें होती है और इनकी पारंपरिक भारतीय शादियों में खास मांग रहती है। जड़ाऊ में सोना का उपयोग कम रहता है। इसमें ज्यादातर अनकट स्टोन्स की सेटिंग सबसे महत्वपूर्ण होती है। एक उत्कृष्ट कृति को तैयार करना एक कठिन प्रक्रिया है। इसे अत्यंत सुंदर बनाने के लिए कुशल कारीगर की शैली का समावेश बहुत ही जरुरी होता है। इस तरह की ज्वैलरी में अनकट स्टोन्स का उपयोग करते समय हर स्तर पर अत्यधिक देखभाल की आवश्यकता होती है क्योंकि एक छोटी से गलती से पूरा ज्वैलरी वर्क बेकार हो सकता है।

आईजीआई की विश्वसनीयता

इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट का पारंपरिक अनकट ज्वैलरी के संरक्षण में महत्वपूर्ण योगदान है। इसकी डिजाइन जिसमें नेचरल डायमंड्स की सेटिंग का सही उपयोग किया गया है, को कांच में डुप्लिकेट करने के प्रयास किया गया है। इस वर्ष के आरंभ में इंटरनेशनल जेमोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ( आईजीआई), इंडिया ने अनपॉलिश्ड, अनकट डायमंड्स जो परफेक्ट जड़ाऊ ज्वैलरी तैयार करने में इस्तेमाल किये जाते हैं, को सर्टिफाइ करने का ऐलान किया है। हीरा पहचान और प्रमाणीकरण प्रयोगशालाओं में प्रथम आईजीआई का निर्णय निर्माताओं और ग्राहकों को राहत प्रदान करता है। अब वे बिना चिंता या डर के प्रमाणित स्टोन वाले इन ज्वैलरी को इन्हें खरीद सकते हैं। आईजीआई की पारंपरिक आभूषण पहचान रिपोर्ट में ज्वैलरी की इंटिग्रीटी, उसकी एथिनीक आकर्षण को दर्शाया गया है। जाड़ऊ ज्वैलरी उच्च कुशल शिल्प कौशल का प्रतीक है, जिसे पहनना हर भारतीय दुल्हन का सपना होता है। आईजीआई इंडिया के एमडी तहमास्प प्रिंटर ने कहा कि उद्योग में पहली बार ब्राइडल ज्वैलरी के प्रमाणन के लिए हम सेवा उपलब्ध करा रहे हैं। इसका हमें खुशी है। ब्राइडल ज्वैलरी की प्रमाणिकता को बनाए रखने में जेम्स एंड ज्वैलरी इंडस्टड्ढी के उच्च मानकों का पूरा पालन किया जाएगा। अनकट डायमंड को प्रमाणित करने के निर्णय से इसमें शामिल अनेक गैर व्यवहार की प्रथाएं समाप्त हो गई हैं जो अक्सर इस ज्वैलरी सेटिंग में की जाती रही हैं। यद्यपि क्लारिटी और कलर अनकट हीरे के महत्वपूर्ण गुण हैं, इसलिए ज्वैलरी में इन डायमंड्स की उत्पत्ति को पहचानना आवश्यक है। ज्वैलरी की विश्वसनीयता को बनाए रखना आईजीआई का मुख्य घ्येय है।

आईजीआई की पारंपरिक आभूषण पहचान सेवाओं के बारे में अधिक जानकारी के लिए ०२२ ४०३५२५५० पर कॉल करें या हमें मेल करें india@igi.org