आरबीजेड के निदेशक राजेंद्र झवेरी के साथ घरेलू और विदेशी बाजारों में हेरिटेज ज्वेलरी की मौजूदा मांग और ट्रेड पर चर्चा। बातचीत में श्री झवेरी ने खुलासा किया कि हेरिटेज ज्वेलरी डिजाइन के लिए उन्हें कहां से प्रेरणा मिलती है।

१. हेरिटेज और हैंडमेड ज्वेलरी के बड़े निर्माताओं में आपका नाम भी शुमार है। घरेलू बाजार में हैंडमेड और हेरिटेज ज्वेलरी की मांग के बारे में आपकी क्या राय है?

भारत में हेरिटेज और हेंडमेड ज्वेलरी की अवधारणा का आधुनिकीकरण पिछले कुछ समय से हो रहा है। फिलहाल गहनों का निर्माण आज के ज्वेलरी ट्रेड के मुताबिक हो रहा है और बाजार मांग के मुताबिक खूबसूरत आभूषण बनाए जा रहे हैं। आभूषण निर्माण प्रक्रिया और तकनीक में कुछ बदलाव कर उपभोक्ताओं के लिए उनकी पसंद की हैंडमेड और हेरिटेज ज्वेलरी की अवधारणा तैयार की गई है।

२. अपने हेरिटेज ज्वेलरी उत्पादों की खूबियों के बारे में बताएं। ऐसे कौन से कारक हैं जिनके आधार पर आपको लगता है कि आप आभूषणों के जरिए देश की विरासत और पारंपरिक ज्वेलरी को उचित तरीके से पेश कर पाएंगे?

देश के कई मंदिरों में उपलब्ध अद्भुद कलाकारी और पेंटिंग वाली खूबसूरत वास्तुकला आज भी मौजूद है। हम उसको ध्यान में रखते हुए न सिर्फ आभूषण बनाते हैं बल्कि उसका प्रमोशन भी करते हैं। हेरिटेज ज्वेलरी का निर्माण युवा उपभोक्ताओं की पसंद के मुताबिक किया जा सकता है। हेरिटेज ज्वेलरी के मार्केटिंग अभियान में युवाओं की पंसंद को शामिल किया जा सकता है। यह जरूरी है कि हेरिटेज ज्वेलरी बनाने से पहले युवा उपभोक्ताओं की मानसिकता समझी जाए। इसके बाद हेरिटेज ज्वेलरी को हैंडमेड ज्वेलरी में बदल दिया जाता है और फिर यह उपभोक्ताओं की पसंद बन जाती है।

३. आपको हेरिटेज और हैंडमेड ज्वेलरी डिजाइन की प्रेरणा कैसे मिलती है? अपने किसी ऐसे आभूषण के बारे में बताएं जिसमें हेरिटेज की छाप है?

पुरानी दिल्ली सहित भारत के अन्य पुराने शहरों में आज भी प्राचीन संरचनाएं हैं, इनकी खिडक़ी और दरवाजे की डिजाइन हमें हेरिटेज ज्वेलरी बनाने की प्रेरणा देती है। ज्वेलरी डिजाइनिंग पर आधारित पुरानी किताबों से भी हमें हेरिटेज ज्वेलरी के बारे में काफी कुछ सीखने और नया करने की प्रेरणा मिलती है।

४. हेरिटेज ज्वेलरी बनाने में कलाकारों की भूमिका कितनी अहम है?

जेम एंड ज्वेलरी उद्योग में कारीगरों की भूमिका काफी महत्वपूर्ण है। वह एक तरह से विश्वकर्मा हैं, जिन्हें न सिर्फ ज्वेलरी डिजाइनिंग की प्रेरणा समझनी है बल्कि कल्पनाओं की दुनिया में भी समझना है ताकि आभूषण निर्माण से पहले उसकी काल्पनिक तस्वीर उनके दिमाग में बने। कुशल कारीगरों द्वारा पूरी निपुणता के साथ आभूषण बनाए जाते हैं और इस प्रक्रिया में ज्वेलरी की खूबसूरती से कोई समझौता नहीं किया जाता।

५. हेरिटेज ज्वेलरी बनानेवाले कारीगरों के कौशल के संरक्षण और इनकी कला को अगली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए क्या उपाय करने चाहिए ताकि आगे भी हमारी समृद्ध परंपरा और सांस्कृतिक विरासत पर आधारित डिजाइन की ज्वेलरी मिलती रहे?

कारोगरों के विकसा और संरक्षण के लिए जरूरी है कि उनके द्वारा बनाई गई हरेक ज्वेलरी की एमआरपी निर्धारित की जाए। सोने के भाव में होनेवाले उतार-चढ़ाव होता रहता है, लेकिन इसका प्रभाव कारीगरों द्वारा बनाई गई ज्वेलरी पर नहीं पड़ना चाहिए, क्योंकि सोना तो कला की अभिव्यक्ति की एक माध्यम है। इसे कैनवास पर उकेरी गई और लोखों रुपये में बिकनेवाली किसी पेंटिंग से समझ सकते हैं। पेंटिंग बनाने में कुछ हजार रुपए लगते हैं, मगर वह बिकती ऊंचे दाम पर है। ठीक उसी तरह से कारीगरों द्वारा बनाए गए आभूषणों का भी मूल्य निश्चित होना चाहिए।

६. क्या आपको लगता है कि भारतीय हेरिटेज ज्वेलरी की मांग अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ेगी? यदि हां तो कैसे?

यदि भारतीय बाजार में उत्पाद का मूल्य निर्धारित किया जाता है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में ऐसे उत्पादों की भारी मांग हो सकती है। ऐसी ज्वेलरी का मूल्य केवल उसे तैयार करने में इस्तेमाल सोने के आधार पर नहीं तय किया जाना चाहिए या फिर इसका आंकलन ज्वेलरी तैयार करने में होनेवाले अपव्यय और मेकिंग चार्ज के आधार पर भी नहीं करना चाहिए बल्कि इसे बनाने में पिरोई गई रचनात्कमता पर गौर करना चाहिए। इस तरह की ज्वेलरी, भले ही उसे तैयार करने में सोने का इस्तेमाल बहुत कम किया गया है, विदेशी बाजारों में ऊंचे भाव पर बेची जा सकती है।