सोना: असली बीमा पॉलिसी


एलन ग्रीनस्पैन
फ़ेडरल रिज़र्व के १९८७ से २००६ तक अध्यक्ष
डॉ. एलन ग्रीनस्पैन फ़ेडरल रिज़र्व के १९८७ से २००६ तक अध्यक्ष थे और वह तभी से सरकारी एजेंसियों, निवेश बैंकों और बचाव कोषों को सलाह देते रहे हैं। यहाँ वह बता रहे हैं विकसित दुनिया में आर्थिक हालात को लेकर अपनी चिंताओं के बारे में, मौद्रिक व्यवस्था में सोने की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में अपने विचार और सोने में अपने इस विश्वास के बारे में कि सोना ही असली बीमा पॉलिसी है।

हाल के महीनों में, स्टैगफ्लेशन को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं। क्या आप मानते हैं कि यह चिंताएं वाजिब हैं?
खासकर विकसित दुनिया में बेबी बूम पीढ़ी के बड़े होने के चलते हमने गतिहीन उत्पादकता वृद्धि का एक लम्बा दौर देखा है। सामाजिक लाभ (अमेरिका में अधिकार) सकल घरेलु बचतों जो कि निवेश की फंडिंग का प्राथमिक स्रोत है, को बुरी तरह प्रभावित कर रही हैं। जीडीपी में हिस्से के रूप में सकल घरेलु बचत में गिरावट ने सकल गैर आवासीय पूँजी निवेश को दबा दिया है। इसने निवेश को कम किया है जिससे वैश्विक रूप से प्रति घंटे के उत्पाद में वृद्धि पर दबाव पड़ा है। प्रति घंटे उत्पादन पिछले पांच सालों में अमेरिका और अन्य विकसित देशों में औसत १/२% बढ़ रहा है जबकि पहले यह विकास दर २% थी। यह अंतर बड़ा है जो सकल घरेलु उत्पाद में और लोगों के जीवन स्तर में झलकता है।

जैसे उत्पादकता वृद्धि धीमी होती है, सम्पूर्ण अर्थ व्यवस्था धीमी होती है। इसने ब्रेक्सिट से लेकर ट्रम्प तक निराशा और आर्थिक लोकलुभावनवाद को बढ़ावा दिया है। आर्थिक लोकलुभावनवाद कोई दर्शन या विचार, उदाहरण के लिए समाजवाद या पूँजीवाद, नहीं है। बल्कि यह पीड़ा से उपजी पुकार है जहाँ लोग कह रहे हैं: कुछ करो। मदद करो!

इसीके साथ, मुद्रास्फीति का खतरा बढ़ रहा है। अमेरिका में बेरोज़गारी की दर ५% से कम है जिसने पारिश्रमिकों और यूनिट के खर्चों पर दबाव बढाया है। मांग बढ़ रही है, जैसा कि हालिया मुद्रा आपूर्ति में नमूदार, व्यापक वृद्धि से पता चलता है, इससे मुद्रास्फीति दबाव बढ़ रहे हैं।आज तक, पारिश्रमिकों में वृद्धि नियोक्ता झेल ले रहे हैं लेकिन यदि खर्चे बढ़ रहे हैं तो आख़्रिकार कीमतें भी बढ़ेंगी। यदि आप गतिहीनता पर मुद्रास्फीति थोपेंगे तो आपको स्टैगफ्लेशन मिलेगी।

जैसे मुद्रास्फीति दबाव बढ़ रहे हैं क्या आपको लगता है कि सोने में नयी रूचि जगेगी?
मुद्रास्फीति में महत्वपूर्ण वृद्धि से सोने की कीमतें बढ़ेंगी ही। इसलिए सोने में इस समय निवेश बीमा है। यह लघु-अवधि के लाभ के लिए नहीं बल्कि दीर्घावधि की सुरक्षा के लिए है।

मैं सोने को प्रमुख वैश्विक करेंसी के रूप में देखता हूँ। चांदी के साथ केवल यही एक करेंसी है, जिसे काउंटर पार्टी हस्ताक्षर की ज़रुरत नहीं होती। सोना हालांकि चांदी से ज्यादा मूल्यवान रहा है। कोई भी सोने को किसी कार्य के भुगतान के रूप में मना नहीं करता। क्रेडिट इंस्ट्रूमेंट और कागज़ी करेंसी सामने वाले पक्ष की साख पर निर्भर करते हैं।लेकिन चांदी के साथ सोना ही ऐसी कर्रेंसियाँ हैं जिनका अंतर्भूत मूल्य है। यह हमेशा से ही ऐसा रहा है। कोई भी इसके मूल्य पर सवालिया निशान नहीं लगता और यह हमेशा से मूल्यवान वस्तु रही है, जो सबसे पहले ६०० बीसी में एशिया माइनर में कॉइन की गयी थी।

पिछले साल से हमने ब्रेक्सिट देखा, ट्रम्प की जीत देखी और व्यवस्था-विरोधी राजनीति में निर्णायक वृद्धि देखी। आपकी राय में केंद्रीय बैंक और मौद्रिक नीति इस नए वातावरण से कैसे एडजस्ट करेगी?
हमारे सामने जो एक मात्र उदाहरण है, वो १९७० के दशक का है जब हमने आखरी बार स्टैगफ्लेशन अनुभव किया था और मुद्रास्फीति के बेकाबू होने की वास्तविक चिंताएं थीं। पॉल वोकर को फ़ेडरल रिज़र्व का अध्यक्ष बनाकर लाया गया और उन्होंने समस्या को विकराल होने से रोकने के लिए के लिए फ़ेडरल दर २०% तक बढ़ा दी। यह बहुत अस्थिरता वाला समय था और फ़ेडरल रिज़र्व के इतिहास में सर्वाधिक प्रभावी मौद्रिक नीति। मुझे उम्मीद है कि हमें व्यवस्था को स्थिर करने के लिए यह प्रक्रिया दोहरानी नहीं होगी। लेकिन यह एक खुला सवाल ही रहेगा।

दि युरोपियन सेंट्रल बैंक (ईसीबी) की समस्याएं फ़ेडरल रिज़र्व से बड़ी हैं। ईसीबी की बैलेंस शीट में संपत्ति पक्ष काफी बड़ा है, और इसमें नियमित रूप से वृद्धि भी हुई है खासकर जबसे मारिओ दराघी ने कहा था कि वह यूरो के सरंक्षण के लिए कुछ भी करेंगे। और मुझे तो यूरो के भविष्य को लेकर ही गहन चिंताएं हैं। उत्तरी यूरोप एक तरह से दक्षिणी यूरोप के घाटे की भरपाई कर रहा है जो हमेशा नहीं चलता रह सकता। यूरोज़ोन विफल हो रहा है।

इस बीच, यूके में यह स्पष्ट नहीं है कि ब्रेक्सिट को कैसे सुलझाया जाएगा। जापान और चीन भी समस्याग्रस्त हैं। इस तरह कोई ऐसी बड़ी अर्थव्यवस्था नहीं दिख रही जो यथोचित रूप से मज़बूत हो और यह भविष्यवाणी करना बहुत ही मुश्किल है कि केंद्रीय बैंक कैसे प्रतिसाद देंगे।

हालांकि सोना कोई आधिकारिक करेंसी नहीं है पर इसने हमेशा मौद्रिक व्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। आपकी राय में नए भूराजनैतिक माहौल में सोने की क्या भूमिका होनी चाहिये?
१९वीं सदी के अंत और २०वीं सदी की शुरुआत में गोल्ड स्टैण्डर्ड अपनी चोटी पर चल रहा था, यह अवधि असाधारण वैश्विक समृधि की थी, उत्पादकता विकास मज़बूत था और मुद्रास्फीति बहुत कम थी।

लेकिन आज, यह माना जाता है कि १९वीं सदी का गोल्ड स्टैण्डर्ड विफल रहा। मेरी राय में यह गलत साइज़ के जूते पहनने और असुविधाजनक महसूस करने की शिकायत करने जैसा है! गोल्ड स्टैण्डर्ड विफल नहीं हुआ, राजनीति की विफलता थी यह। प्रथम विश्व युद्ध ने तय विनिमय दर समानताएं ख़्त्म कर दी थीं और कोई देश यूएस डॉलर के मुकाबले कम विनिमय दर होने का अपमान नहीं सहना चाहता था।

उदाहरण के लिए ब्रिटेन ने १९२५ में उस गोल्ड स्टैण्डर्ड पर लौटा जिसमें विनिमय दर १९१३ की थी और अमेरिकी डॉलर (अमेरिकी डॉलर ४.८६ प्रति पौंड स्टर्लिंग) के सापेक्ष थी। यह विंस्टन चर्चिल, जो उस समय खजाने के चांसलर थे, की एक बड़ी गलती थी। १९२० के दशक के अंत में इसने ब्रिटेन को गिरावट की दिशा में धकेला और बैंक ऑफ़ इंग्लैंड ने १९३१ डिफ़ॉल्ट किया। ऐसा नहीं था कि गोल्ड स्टैण्डर्ड के साथ समस्या थी, समस्या युद्ध पूर्व विनिमय दर समानताओं में थी, जो, अलग-अलग देशों में युद्ध और आर्थिक विनाश के प्रभावों में फर्क के कारण आम तौर पर अवास्तविक हो चुकी थीं।

आज, वापस गोल्ड स्टैण्डर्ड तक जाना हताशा में किया कार्य माना जाएगा। लेकिन यदि आज गोल्ड स्टैण्डर्ड होता तो आज हम उस स्थिति में नहीं होते जिसमें हैं। इंफ्राट्रक्चर पर जितना हमें खर्च करना चाहिए, हम करने के स्थिति में नहीं हैं। अमेरिका में इसकी खासी ज़रुरत है और अंत में बेहतर आर्थिक माहौल (इंफ्राट्रक्चर) के रूप में इसका लाभ हमें मिलेगा। पर ऐसे बहुत कम लाभ ऋण पुनर्भुगतान पर निजी नकदी प्रवाहमें प्रतिबिंबित होंगे। ऐसा काफी सारा इंफ्राट्रक्चर सरकारी ऋण से फण्ड करना होगा। हम पहले से जीडीपी पर फ़ेडरल ऋण का अनुपात तिहिरी डिजिट की ओर बढ़ता देखने की कगार पर हैं। हम कभी भी इस चरम ऋणी की स्थिति में नहीं पहुंचे होते थे यदि हम गोल्ड स्टैण्डर्ड पर होते थे क्योंकि गोल्ड स्टैण्डर्ड तरीका है यह सुरक्षित करने का कि राजकोषीय अर्थात फिस्कल नीति कभी हाथ से न निकले।

क्या आपको लगता है कि फिस्कल नीति को मौद्रिक नीति निर्णयों की मदद के लिए एडजस्ट किया जाना चाहिए?
मुझे लगता है कि इसका उल्टा होना चाहिए। फिस्कल नीति ज्यादा बुनियादी नीति है। मौद्रिक नीति में वही सामथ्र्य नहीं होती। और यदि फिस्कल नीति मजबूत है, तो मौद्रिक नीति पर अमल करना आसान होता है। एक केंद्रीय बैंकर के लिए सबसे बुरी स्थिति होती है अस्थिर फिस्कल व्यवस्था, जैसा कि हम आज अनुभव कर रहे हैं।

मुख्य मुद्दा है कि सरकारी खर्च की वृद्धि का अनुपात, मुख्य रूप से सामजिक अधिकार, वित्तीय व्यवस्था को अस्थिर कर रहा है। सेवा निवृत्ति की उम्र ६५ साल, जो १९३५ में राष्ट्रपति रूसवेल्ट ने लायी थी, में तब से मामूली परिवर्तन किया गया है, हालांकि दीर्घायु तब से काफी बढ़ी हुई है। इस तरह, पहली बात यह है कि हमें सेवा निवृत्ति की उम्र बढ़ानी चाहिए। इससे खर्च में काफी कटौती आएगी।

मैं यह भी मानता हूँ कि बैंकों और वित्तीय मध्यस्थों के लिए नियामक पूँजी आवश्यकताएं मौजूदा से ज्यादा होनी चाहिए। पीछे मुड़कर देखें, तो हाल की पीढ़ियों का हर संकट मौद्रिक संकट है। उदाहरण के लिए अमेरिकी अर्थ व्यवस्था का गैर वित्तीय हिस्सा २००८ से पहले अच्छी स्थिति में था। वित्तीय व्यवस्था के पतन ने अर्थ व्यवस्था के गैर वित्तीय हिस्से को गिरा दिया। यदि आप वित्तीय व्यवस्था में पर्याप्त पूँजी बनायेंगे तो क्रमिक, संक्रामक डिफ़ॉल्ट की संभावनाएं काफी कम हो जायेंगी।

उदाहरण के लिए यदि हमने वित्तीय बैंकों के लिए पूँजी आवश्यकताओं को वर्तमान में संपत्तियों के लगभग ११% से बढ़ाकर २०% अथवा ३०% कर देंगे तो बनकर कहेंगे कि वह ऐसे हालत में लाभकारी लोन नहीं बना पाएंगे। लेकिन करेंसी नियंत्रक कार्यालय का १८६९ का डाटा अलग ही कहानी कहता है। इस डाटा के अनुसार बैंक की शुद्ध आय की इक्विटी कैपिटल पर दर डाटा इतिहास के लगभग सभी सालों में ५% से १०% रही है, भले संपत्ति पर इक्विटी कैपिटलका स्तर कुछ भी। इससे संकेत मिलता है कि हम एक अवधि में ऊंची पूँजी आवश्यकताओं को बिना वित्तीय व्यवस्था की प्रभाविकता को घटाए पूरा कर सकते हैं। हाँ, इससे लेंडिंग में कुछ समय के लिए कमी आएगी लेकिन, वैसे भी वह लोन कभी नहीं दिए जाने चाहिए थे।

बहुत कम और नकारात्मक ब्याज दरों की पृष्ठभूमि में कई रिज़र्व प्रबंधक सोने के बड़े खरीदार रहे है। आपकी राय में, एक रिज़र्व संपत्ति के रूप में सोने की क्या भूमिका है?
जब मैं फ़ेडरल रिज़र्व में अध्यक्ष था तो मैं अमेरिकी सांसद रॉन पॉल से चर्चा करता था, जो सोने के पैरोकार थे। हमारे बीच कुछ दिलचस्प चर्चाएँ हुई थीं। मैंने उन्हें बताया था कि अमेरिकी मौद्रिक नीति ने ऐसे संकेतों पर चलने की कोशिश की थी की एक गोल्ड स्टैण्डर्ड बनता। यह कागज़ी करेंसी के साथ भी मज़बूत मौद्रिक नीति है। इस सन्दर्भ में मैंने उन्हें बताया था कियदि हम गोल्ड स्टैण्डर्ड पर वापस जाते थे तब भी नीति पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ता था।