ज्वैलरी सेक्टर की नौकरी में कटौती, संकट मंडराए

गत कुछ वर्षों से भारत का ज्वैलरी सेक्टर पॉलिसी मेकिंग को लेकर सरकारी दबाव से जूझ रहा है। अर्थव्यवस्था के स्वस्थ विकास के लिए नीतियों का मसौदा तैयार किया है लेकिन जब बात बिजनेस की होती है जहां कारोबार नकदी में होते हैं, प्रॉफिट मार्जिंस कैश में कारोबार के बिना काफी कम होती हैं। सरकार की नीतियों के कारण कारोबार पर असर होने लगता है। ज्वैलरी की खरीद पर पैन नंबर की अनिवार्यता से लेकर शुल्क बढ़ाने तक सभी सरकारी नीतियों का बोझ इंडस्ट्री के कंधों पर डाल दिया गया है। सरकार द्वारा विमुद्रीकरण (डेमोनेटाइजेशन) का नवीनतम फैसले ने भी ज्वैलरी सेक्टर पर प्रहार किया है। यद्यपि सरकार के इस फैसले का उद्देश्य बेहिसाब नकदी की समानांतर अर्थव्यवस्था को रोकना है। लेकिन ज्वैलरी सेक्टर को इससे अधिक नुकसान हुआ है। इस सेक्टर में बंदी, बेरोजगारी, कर्जे संकट बढ़ गया है जबकि इस सेक्टर का कारोबार ४,१५,००० करोड़ रुपए से अधिक है। ज्वैलर्स गत दो हफ्ते के दौरान अपने घटते कारोबार को देखते हुए अपने फिक्स्ड कॉस्ट को कम करने के लिए नौकरियों में कटौती करने की योजना बना रहे हैं।

सरकार द्वारा ८ नवंबर से ५०० और १००० रुपए की नोटबंदी के कारण ज्वैलर्स के कारोबार में ८० प्रतिशत जितना गिरावट का अनुमान है। वेडिंग सीजन में ज्वैलरी की मांग एवं बिक्री जोरदार होती है, इस सीजन के बावजूद सरकार की नोटबंदी के कारण ज्वैलर्स के कारोबार घटे हैं और तरलता संकट गहराया है। ऑल इंडिया जेम्स एंड ज्वैलरी ट्रेड फेडरेशन के चेयरमैन जीवी श्रीधर ने कहा कि हाई वैल्यू के करेंसी के विमुद्रीकरण से बिजनेस रुक गया है और इस सेक्टर में नौकरी में कटौती के लिए ज्वैलर्स मजबूर होने होने लगे हैं।

ज्वैलरी इंडस्ट्री में २५ से ३० लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। नेशनल स्कील डेवलपमेंट कार्पोरेशन और केपीएमजी के २०१५ के एक संयुक्त अध्ययन के मुताबिक वर्ष २०२२ तक इस सेक्टर में ३.५९ मिलियन और रोजगार के निर्माण का अनुमान लगाया गया है। लेकिन ज्वैलर्स ने अब वर्तमान संकट को देखते हुए वेरिएबल्स पेमेंट्स वर्कर्स को देना कम कर दिया है और टैक्स तथा कैश के सौदों के नियमों को सरल बनाने के सरकार के संकेतो के कारण श्रमिकों की छंटनी फिलहाल होल्ड पर रखा है। इंडस्ट्री के एक सूत्र ने बताया। इस साल सरकार ने २,००,००० रुपए तक के आभूषण खरीदने के दौरान पैन नंबर की अनिवार्यता की थी जिसकी सीमा बाद में और बढ़ा दी गई। श्रमिकों ने बैंक खाते खोलना शुरू कर दिया है लेकिन २४,००० रुपये प्रति सप्ताह की नकद निकासी सीमा अपर्याप्त है कांट्रैक्टरों को अपने बिजनेस चलाने के लिए।

इंडस्ट्री के एक और सदस्य ने कहा कि सेलर्स भी अपना सोना बेच नहीं सकते क्योंकि ज्वैलर्स उसका पेमेंट चेक में कर रहे है और इन्हें साप्ताहिक निकासी सीमा के कारण आसानी से भुनाया नहीं जा सकता है।