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चित्र संख्या १, बैंकाक का सुवर्णभूमि हवाई अड्डा का लाउंज, पहाड़ से सागर को मथा जा रहा है
दरअसल, करीब २४५ मिलियन वर्ष पूर्व सभी महादेश एक साथ जुड़े थे जो पेंगिया (चित्र २) कहलाते थे। भूगर्भीय हलचलों की वजह से भूमि टुकडों में बंटती रही और वे सभी महादेश कहलाये। ये महादेश ग्लोब के एक कोने से दूसरे कोने में खिसकते रहे और कहा जा रहा है कि अभी भी ये घूम रहे हैं। इन हलचलों की वजह से काफी दवाब बढ़ता है और गर्मी निकलती है। कह सकते हैं कि सागर मंथन से भूगर्भ में छुपे रत्न बाहर आए।
अफ्रीका महादेश के नीचे के पत्थरों कुछ ज्यादा ही हलचल हो रहा था, तभी तो वहां हीरा, माणिक (चित्र ३ए), पन्ना (चित्र ३बी), टेंजानाइट (चित्र ३सी), ग्रीन सेवोराइट और ओरेंज स्पेसेरटाइट गारनेट (चित्र ३डी) समेत कई रंगीन रत्न अफ्रीकी देशों से नियमित रूप से निकाले जा रहे हैं। श्रीलंका के साथ साथ भारतीय भूमि के इसी स्थान परिवर्तन के दौरान भूगर्भीय पत्थर विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरा और उसका काया रूपांतर होता रहा। इसके परिणामस्वरूप रत्नों की विस्तृत श्रृंखला का निर्माण हुआ। जैसा कि हम जानते हैं, आज श्रीलंका के खदानों से माणिक, नीले और पीले नीलम, जिरकोनिया, फेंसेज, क्रिसोबेरेलीज, एलेक्जेंड्रिट्स, गारनेट, सिंहलाइट और कई अन्य तरह के रत्न मिलते हैं। भारत भी अपने प्रख्यात हीरे और करीब करीब सभी प्रकार के नवरत्नों के लिए प्रख्यात है।
नवरत्न नवरत्न का केन्द्रीय पत्थर हमेशा ही माणिक रहा है, जिसके चारो तरफ मोती, हीरा, पन्ना और पीला नीलम एक तरफ तो दूसरी तरफ मूंगा, लहसूनिया, नीला नीलम, और हेसोनाइट गारनेट दूसरी तरफ रहता है। कहा जाता है कि यह व्यवस्था सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के बीच सही संतुलन रहता है और इसके धारण करने वालों को खगोलीय ऊर्जा का लाभ मिलता है। इस व्याख्या को आगे इससे भी जोड़ा जाता है कि हर रत्न कुछ खलोगीय तत्व से जुड़ा होता है। यह एक धार्मिक मान्यता है कि कई लोग जब एक नया घर का निर्माण शरू करते हैं तो नव रत्न को नींव में डालते हैं ताकि घर को अच्छी ऊर्जा मिलती रहे।
रत्नों से शक्ति चित्र ७, ग्रहों से जुड़े रत्न यदि आप चित्र ७ देखें तो पीला नीलम वृहस्पति ग्रह से जुड़ा है। हम जानते हैं कि चंद्रमा जो कि पृथ्वी से ३८४४०० किलोमीटर दूर है, जो आकार में पृथ्वी से एक चौथाई है, का प्रभाव ज्वार और हमारे शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ पर पड़ता है। इसी प्रकार वृहस्पति, जो कि पृथ्वी से ११ गुना बड़ा है, और वह यहां से ५८८ मिलियन किलोमीटर दूर है, उसका भी निश्चित रूप से हमारे उपर कुछ प्रभाव पड़ता है।
इसलिए, यह संभव है कि पीले नीलम से निकलने वाली तरंगों का असर मानव शरीर पर कुछ न कुछ जरूर पड़ता है। यह कोई आश्चर्य नहीं है कि बहुत से भारतीय आपको अनामिका में पीला नीलम धारण किये हुए दिख जाएंगे।
लेजर आज रत्न का ऊर्जावान गुण लोगों के स्वास्थ्य को सुधारने में उपयोग किया जा रहा है। विभिन्न रत्नों के सहारे क्रिस्टल थेरेपी और क्रिस्टल हीलिंग किया जा रहा है। औरा हीलिंग और इलेक्ट्रो जेम हीलिंग का भी काफी उपयोग हो रहा है। देखा जाता है कि कई बार ऐसे व्यक्तियों में इसलिए समस्याएं रह जाती हैं कि वह उपयुक्त रत्न का प्रयोग नहीं कर रहा होता है। कई मामलों में देखा गया है कि कोई व्यक्ति पन्ना मानकर ग्रीन फ्लोराइट का उपयोग करता है तो जाहिर है कि उसका कोई प्रभाव नहीं होगा। कई ऐसी विधियां हैं, जैसे किरलियन फोटोग्राफी, जिससे पता चल जाता है कि किसी रत्न से निकली प्रकाश की किरणें का मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है। लेकिन इस समय बहुत ही बुनियादी स्तर पर ही इस बारे में अनुसंधान हुए हैं। इसलिए इस बारे में ज्यादा आंकड़े नहीं मिलते हैं। फिर भी, यही सच्चाई है कि माणिक एवं अन्य रत्नों का क्रिस्टल का उपयोग लेजर तकनीक में होता है और किसी सच्चाई को स्थापित करने की लेजर बीम में काफी शक्ति होती है।
क्वाट्र्ज घडि़यां क्वाट्र्ज क्रिस्टल का ही कमाल है कि ढेरों टेलीविजन, क्वाट्र्ज घडि़यां, पोर्टेबल फोन और पर्सनल कंप्यूटर आदि बेहतर ढंग से चल रहे हैं।
रत्नों से भी मिलती है ऊर्जा |