रंगीन रत्नों ने हमेशा से ही मानवों को आकर्षित किया है। रंगीन रत्नों के साथ कई दंत कथाएं, किस्मत बदलने की कथा, आर्थिक रूप से तबाह हो जाने, मौत के बिस्तर से निकलने और इसकी वजह से मौत की भी कथाएं सुनने में आती हैं। तब भी यह जानना जरूरी है कि इन दंत कथाओं को कुछ वैज्ञानिक तथ्यों से जोड़ा जा सकता है। इस दंत कथा को सब जानते हैं कि किस तरह से सागर को मथा गया था और रत्न बाहर आए थे। यदि आप बैंकाक स्थित सुवर्णभूमि हवाई अड्डे के प्रस्थान टर्मिनल पर जाएं तो आप इसे देख सकेंगे (चित्र संख्या १)। कोई भी वहां देख सकता है कि किस प्रकार एक विशाल पहाड़ से सागर को मथा गया था और थाइलैंड को सभी कीमती पत्थर मिले थे।

चित्र संख्या १, बैंकाक का सुवर्णभूमि हवाई अड्डा का लाउंज, पहाड़ से सागर को मथा जा रहा है

दरअसल, करीब २४५ मिलियन वर्ष पूर्व सभी महादेश एक साथ जुड़े थे जो पेंगिया (चित्र २) कहलाते थे। भूगर्भीय हलचलों की वजह से भूमि टुकडों में बंटती रही और वे सभी महादेश कहलाये। ये महादेश ग्लोब के एक कोने से दूसरे कोने में खिसकते रहे और कहा जा रहा है कि अभी भी ये घूम रहे हैं। इन हलचलों की वजह से काफी दवाब बढ़ता है और गर्मी निकलती है। कह सकते हैं कि सागर मंथन से भूगर्भ में छुपे रत्न बाहर आए।

अफ्रीका महादेश के नीचे के पत्थरों कुछ ज्यादा ही हलचल हो रहा था, तभी तो वहां हीरा, माणिक (चित्र ३ए), पन्ना (चित्र ३बी), टेंजानाइट (चित्र ३सी), ग्रीन सेवोराइट और ओरेंज स्पेसेरटाइट गारनेट (चित्र ३डी) समेत कई रंगीन रत्न अफ्रीकी देशों से नियमित रूप से निकाले जा रहे हैं।

वास्तव में, मेडागास्कर द्वीप रंगीन पत्थरों के मामले में बेहद धनी है। आस्ट्रेलियायी महादेश के पास से भूमि का टुकड़ा पूर्व की तरफ बढ़ा जबकि श्रीलंका के साथ भारतीय उपमहाद्वीप दक्षिणी गोलाद्र्ध से खिसकते हुए उत्तरी गोलाद्र्ध की तरफ आया और टेथिस सागर की तलछट से टकराया, जिससे हिमालय पर्वत श्रृंखला का निर्माण हुआ। अभी भी इस तरह की हलचल चल रही है और हर वर्ष हिमालय की उंचाई हर बर्ष करीब एक सेंटीमीटर बढ़ जाती है।

श्रीलंका के साथ साथ भारतीय भूमि के इसी स्थान परिवर्तन के दौरान भूगर्भीय पत्थर विभिन्न प्रक्रियाओं से गुजरा और उसका काया रूपांतर होता रहा। इसके परिणामस्वरूप रत्नों की विस्तृत श्रृंखला का निर्माण हुआ। जैसा कि हम जानते हैं, आज श्रीलंका के खदानों से माणिक, नीले और पीले नीलम, जिरकोनिया, फेंसेज, क्रिसोबेरेलीज, एलेक्जेंड्रिट्स, गारनेट, सिंहलाइट और कई अन्य तरह के रत्न मिलते हैं। भारत भी अपने प्रख्यात हीरे और करीब करीब सभी प्रकार के नवरत्नों के लिए प्रख्यात है।

नवरत्न

भारत में ढेरों लोग ऐसे मिल जाएंगे, जिनका मानना है कि हीरे की वजह से भाग्य खराब हो जाता है। यह सही नहीं है, हीरे की वजह से कोई अच्छा या बुरा भाग्य नहीं होता। अन्य रत्नों की तरह ही हीरा में भी कुछ रेडियेशन होता है (हर चीज में रेडियेशन उत्सर्जित होता है) और इन रेडियेशन का जरूर ही कुछ न कुछ प्रभाव मानव शरीर पर पड़ता है। इस तरह का वाइबरेशन धारण करने वाले पर दुष्प्रभाव भी डाल सकता है। यदि आप नवरत्न के नौ रत्नों का आभूषणों में उपयोग देखें तो आप पाएंगे कि प्राचीन काल से ही इसका उपयोग हो रहा है। यदि ऐसा हो रहा है तो अवश्य ही इसका कुछ कारण होगा।


नवरत्न का केन्द्रीय पत्थर हमेशा ही माणिक रहा है, जिसके चारो तरफ मोती, हीरा, पन्ना और पीला नीलम एक तरफ तो दूसरी तरफ मूंगा, लहसूनिया, नीला नीलम, और हेसोनाइट गारनेट दूसरी तरफ रहता है। कहा जाता है कि यह व्यवस्था सकारात्मक और नकारात्मक ऊर्जा के बीच सही संतुलन रहता है और इसके धारण करने वालों को खगोलीय ऊर्जा का लाभ मिलता है।

इस व्याख्या को आगे इससे भी जोड़ा जाता है कि हर रत्न कुछ खलोगीय तत्व से जुड़ा होता है। यह एक धार्मिक मान्यता है कि कई लोग जब एक नया घर का निर्माण शरू करते हैं तो नव रत्न को नींव में डालते हैं ताकि घर को अच्छी ऊर्जा मिलती रहे।

रत्नों से शक्ति


                                                         चित्र ७, ग्रहों से जुड़े रत्न

यदि आप चित्र ७ देखें तो पीला नीलम वृहस्पति ग्रह से जुड़ा है। हम जानते हैं कि चंद्रमा जो कि पृथ्वी से ३८४४०० किलोमीटर दूर है, जो आकार में पृथ्वी से एक चौथाई है, का प्रभाव ज्वार और हमारे शरीर से निकलने वाले तरल पदार्थ पर पड़ता है। इसी प्रकार वृहस्पति, जो कि पृथ्वी से ११ गुना बड़ा है, और वह यहां से ५८८ मिलियन किलोमीटर दूर है, उसका भी निश्चित रूप से हमारे उपर कुछ प्रभाव पड़ता है।

इसलिए, यह संभव है कि पीले नीलम से निकलने वाली तरंगों का असर मानव शरीर पर कुछ न कुछ जरूर पड़ता है। यह कोई आश्चर्य नहीं है कि बहुत से भारतीय आपको अनामिका में पीला नीलम धारण किये हुए दिख जाएंगे।

लेजर

मोती और मूंगा को छोड़ दे तो रत्नों में एक ही क्रिस्टल होता है। यदि कोई प्रकाश के मौलिक गुण का विश्लेषण करें तो रत्नों से पार हो जाने वाले पकाश प्लेन पोलेराइज्ड लाइट होते हैं। इसका मतलब है कि पकाश की किरणों का प्रवाह किसी खास जगह ही पड़ता है। यह उसी तरह होता है जैसे कि विभिन्न आकार के पास्ता को बनाते हैं, इस इस बात पर निर्भर करता है कि उस पर किस तरह का दवाब पड़ता है। उदाहरण के लिए एक माणिक से गुजारा गए प्रकाश किरण में एक करेक्टरिस्टिक वेबलैंथ होता है और इसका एक खास जगह पर प्रभाव पड़ता है। यदि सामान्य किरणों के मुकाबले इस प्रकार के प्रकाश किरणों की तुलना करें तो यह निश्चित रूप से मानव शरीर पर भी कुछ अलग प्रभाव डालते होंगे।

आज रत्न का ऊर्जावान गुण लोगों के स्वास्थ्य को सुधारने में उपयोग किया जा रहा है। विभिन्न रत्नों के सहारे क्रिस्टल थेरेपी और क्रिस्टल हीलिंग किया जा रहा है। औरा हीलिंग और इलेक्ट्रो जेम हीलिंग का भी काफी उपयोग हो रहा है। देखा जाता है कि कई बार ऐसे व्यक्तियों में इसलिए समस्याएं रह जाती हैं कि वह उपयुक्त रत्न का प्रयोग नहीं कर रहा होता है। कई मामलों में देखा गया है कि कोई व्यक्ति पन्ना मानकर ग्रीन फ्लोराइट का उपयोग करता है तो जाहिर है कि उसका कोई प्रभाव नहीं होगा।

कई ऐसी विधियां हैं, जैसे किरलियन फोटोग्राफी, जिससे पता चल जाता है कि किसी रत्न से निकली प्रकाश की किरणें का मानव शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है। लेकिन इस समय बहुत ही बुनियादी स्तर पर ही इस बारे में अनुसंधान हुए हैं। इसलिए इस बारे में ज्यादा आंकड़े नहीं मिलते हैं। फिर भी, यही सच्चाई है कि माणिक एवं अन्य रत्नों का क्रिस्टल का उपयोग लेजर तकनीक में होता है और किसी सच्चाई को स्थापित करने की लेजर बीम में काफी शक्ति होती है।

क्वाट्र्ज घडि़यां

क्वाट्र्ज क्रिस्टल में एक अनूठी पीजोइलेक्ट्रीसिटी का गुण होता है। इसका मतलब है कि क्रिस्टल से तब ऊर्जा पैदा हो सकता है जब कि उस पर दवाब पड़ता है, या जब क्रिस्टल विद्युत धारा का प्रवाह होता है, तो असल में क्रिस्टल सूक्ष्मता से आगे बढ़ता है। यह एक महान खोज है। पीजोइलेक्ट्रीक प्रभाव की खोज १८८० में जैकस और पियरे क्यूरियो नाम के दो भाईयों ने किया था। उन्होंने पाया कि जब टनमेलिन, टोपाज और क्वाट्र्ज जैसे क्रिस्टल पर यांत्रिक दवाब डाला गया तो विद्युत तरंगों का प्रवाह हुआ। इसमें वोल्ट का प्रवाह दवाब के समानुपातिक था।

क्वाट्र्ज क्रिस्टल का ही कमाल है कि ढेरों टेलीविजन, क्वाट्र्ज घडि़यां, पोर्टेबल फोन और पर्सनल कंप्यूटर आदि बेहतर ढंग से चल रहे हैं।

रत्नों से भी मिलती है ऊर्जा

किसी रत्न से छन कर आने वाला प्रकाश का किरण निश्चित रूप से ऊर्जावान हो जाता है। यदि किसी रत्न को अंगूठी में लगाया जाता है तो रत्न से छन कर आने वाली प्रकाश की किरणें पत्थर के नीचे त्वचा पर पड़ती है। इन किरणों से नर्व और रक्त की शिराओं पर असर पड़ता है और ऊर्जा का स्तर बढ़ता है। कोई भी देख सकता है कि कुछ व्यक्तियों के रत्न के धारण करने के बाद उनकी स्थिति में परिवर्तन हो गया। रत्न जड़े ताज से भी ऊर्जा मिलती होगी। वैसे भी भारत में लोग अपना भविष्यफल देखते हैं और उसी हिसाब से कुछ उपाय भी करते हैं।

भविष्यवक्ता, रेकी हीलर, वास्तु विशेषज्ञ, क्रिस्टल थेरेपिस्ट और अन्य विशेषज्ञ बेहतर भविष्य के लिए रत्न धारण करने को कहते हैं। हालांकि इसमें कितनी सत्यता है, इसकी जांच की जानी है। लेकिन यह सत्य है कि रत्न से छन कर आने वाली प्रकाश की किरणों से कुछ अनूठी ऊर्जा निकलती है जिसका स्वास्थ्य, संपत्ति और खुशिहाली पर असर पड़ता है।